Thursday, July 13, 2017

गीला शीशा



Source: Cambellrivermirror

उसने झाँखा मेरे अंदर कह के की तेरा ही साया हूँ,
क्या उसने देख लिया वो सच जिससे मैं घबराया हूँ |

चलता था हिरणी जैसे कभी ये मेरा मन,
लेकिन धुंदला गया सब कुछ जब से खोया मेरा बचपन | 

गीले शीशे की तरह हर कोना मेरा ओझिल सा है ,
कोई इस धुंद को हटा दे मन ऐसा मैला क्यों कुटा कुटा है |

किसी कोने से वोही राहगीर अपने साथ लिए कुछ लाया था ,
जिसने कहके मैं हूँ तेरा साया मेरे अंदर के डर को भांपा था |

लोगों की गुफ्तुगू से पता लगा 
वो गीले शीशे को सुखाने की चाह मे बहुत दूर से आया है |

लेकिन उसके झोले मे छुपे न जाने है कैसे यन्त्र,
ये सोच के मेरा मन घबराया; 

मैं एक पल रुका,सोचा भाग चलता हूँ,
या टूट के चकनाचूर हो जाऊ ये भी मुमकिन कर सकता हूँ |

न उसे पता चलेगा इसके पीछे की सच्चाई ,
और न मैं होऊंगा खुद के सच से रूबरू, जो शर्मसार कर देगा मुझे दर बदर 
हो सकता है ये देख के वो न पोंछे मेरे बिखरे आंसू ,
समेट ले अपने बस्ते को और चल पड़े आगे कही किसी ओर |

हर कोई अपनी इस गीले शीशे की परछाई से क्यों भागता है ,
जब कोई उसे हटाने आये तो उससे ही क्यों घबराता है ?

सच क्या इतना मुश्किल 
या झूठ इतना शक्तिशाली है? 
क्या ये ऐसी ऊर्जा है जिसने सूरज की रौशनी भी धुंदली कर डाली है ?

हर किसी का साया आज एक गीला शीशा है ,
पूरी तरह बेरंग और ओझिल अस्तितत्व से कई दूर |

क्यों न हम वो राहगीर बन जाये ,
चलो सबसे पहले खुद की ही मदद करे और इस शीशे से ये पर्दा हटाए |

नया उजाला नया सवेरा लेके आये ,
कुछ रंग भरे सबके जीवन मे ,
इस गीले शीशे को भी मुस्कुराना सिखाये | 
इस गीले शीशे को भी मुस्कुराना सिखाये | 






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