Tuesday, October 2, 2012

अनजान शहर


ये शहर कुछ अनजान सा है,
हर दिन इंसान परेशान सा है,
भागते से है सब किसी अनजानी परछाई के पीछे
कब रुबुरु होंगे उससे ये पता भी नहीं है !

पैसे का जोर कुछ ज्यादा ही है ,
रिश्तों की कीमत अब कुछ भी नहीं है  ,
वक़्त ठहरता नहीं दो पल के लिए भी ,
हर तरफ भागम भाग की उलझी कड़ी है !

कोई ठहर के हंस भी दे
ऐसे हालात  कम ही है ,
सरपट दौड़ रही है ज़िन्दगी
रफ़्तार कम नहीं है !

कोई मिलके कहता क्यूँ नहीं
की आखिर क्या कमी है ?
समझो ज़रा वक़्त के नाजुक पहलु को
प्यार सबके लिए एक ही है !

ज़रा मुडो थोडा पीछे ,
वक़्त को ज़रा थामो ,
उसे समझाओ सब माज़रा ,
उसकी रफ़्तार को धीमें से रोको !

अभी निकल गया मौका
तो वापिस ना आएगा ,
माना पैसा भी कीमती है
पर रिश्तों के महत्व यूँ ही धुंधला जाएगा !

कब्र तक साथ कोई नहीं देता ,
पैसा इंसान को असली तसल्ली भी नहीं देता ,
अगर ख़ुशी बांटने वाला कोई साथी ना हो
तो शोहरत भी पानी की तरह बह जाती है ,
एक दिन यह जिंदगानी यूँही बीत जाती है !

ये शहर कुछ अनजान सा है,इसका हर पहलु गुमनाम सा है!

गुम न हो जाऊ इस दुनिया मे
मुश्किल बड़ा लग रहा यहाँ गुज़ारा सा है ,
रिश्तें न टूटे ये ही उम्मीद कर सकते है
आखिर होगा क्या यह न किसी को पता है !

देखते है ये शहर और क्या रंग दिखाएगा
नये रिश्ते बनाएगा या पुरानों का भी अंत कर जाएगा ,
साथ रहेंगे सब या बिछड़ जाएँगे ,
शोहरत की अंधाधुंध चांदनी में या कहीं खो जाएँगे !

ये शहर कुछ अनजान सा है,इसका हर पहलु गुमनाम सा है!