Sunday, March 4, 2012

कैसे समझाऊ ये दिल की बातें

कैसे समझाऊ ये दिल की बातें
जब खुद ही समझना मुश्किल है
एक छोटी सी बात है बड़ी
और बड़ी बातें तो बस पलछिन है!

चाँद तारे है दूर कही
पर लगता है जीते सुकून में है
चमकते है टिमटिमाते  है साथ जशन मानते है
पर उनकी जैसी हमारी ज़िन्दगी कहाँ
अजीब है जिसे समझना मुश्किल है !

रातें बड़ी अजीब होती है
अनकही बातें कह जाती  है
कभी यूँही कटती है ,कभी मुश्किलें बड़ा जाती है
कभी आँखों से नींद चुराती है
कभी कई सपने दे जाती है
वादे करती है बहुत
कभी सफ़ेद झूठ कह जाती है
बातों को समझने की उलझन में यूँ ही चलती जाती है
रूकती नहीं ठहरती नहीं
मैं यूँ ही आवाज़ देती हूँ
कैसे समझाउं ये दिल की बातें
जब खुद ही समझना मुश्किल है !


दिल कहता है चलते जाना
रुक के भी क्या करना है
न सुने न समझे कोई
इसपे क्यूँ ही रोना है
पर एक कोना मेरे दिल का
कुछ अलग ही कहानी कह जाता है
कहता है रुक जा थोड़े पल
शायद कोई तुझे बुलाता है !

लाख कोशिशें करती हूँ
पर समझना बड़ा खेल है
अजीब बातें है इस छोटे से दिल की
जिसे पढना मुश्किल है
उलझने कम नहीं जो ये और मुश्किल बड़ा जाता है

कैसे समझाऊ ये दिल की बातें
जब खुद ही समझना मुश्किल है!!




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