Wednesday, April 20, 2011

मेरा अक्स


सांझ ढलते ही,
दोस्तों की मेहफ़िल छटते ही,
फिर मुझे मेरा अक्स आज याद आ गया, 
बीता हर लम्हा फिर दोहराह गया !!!

वक़्त के उस मोड़ पे,
उस पाक मोहब्बत का,
वो फिर सिला दे गया ,
आबो हवा में फिर वो खुशनुमा एहसास दे गया!!

एहसास का पर्दा जब हटा ,
वो मीठा दर्द फिर नासूर बनके कुछ कह गया ,
शीशा दर्द से टुटके यूँ बिखर गया !
टूटे टुकडो को समेटने का भी वो हक़ न दे गया,
एक फूँख से अरमानो का किला यूँ ही ढह गया,
समंदर की आती जाती लहरों मे खो गया!!

क्यूँ तोड़ गया वो हर सपना ,
जिसमे उसकी मर्ज़ी भी कही छुपी थी!
कहा खो गया वो अपना जिसने मेरी ना में भी हाँ पढ़ी थी!
क्यूँ मुकर गया वो उस एहसास से
जो उसे भी हर पल होता था!
कहाँ गया वो दिल का हिस्सा 
जो मेरे लिए भी कभी रोता था! 
कहाँ गए वो एहसास
जो बिना कहे ही सब कुछ कह जाते थे!
कहाँ गयी वो याद 
जो बिन आये ही आंसू  दे जाते थे!
कहाँ गई वो रातें जब 
जब हम चाँद को यूँ ही देखा करते थे
वो बात जो चुपके से बोला करते थे !!

सब भूल गया ,
यूँ रूठ गया ,
छोड़ के मुह मोड़ के,
वो अकेला छोड़ गया !!
मैं पूछती रह गई बस इन फ़िज़ाओं से 
"क्या थी मेरी खता 
की मेरा अक्स ही मुझसे जुदा हो गया "!!


Friday, April 1, 2011

किस पथ पर जाउँ ?

चलती टेढ़ी मेढ़ी राहों पे ,
मैं जा पहुंची उस दोराहे पे ,
समझ में आई यह बात की किस पथ पर जाउँ ?
एक तरफ है सुन्दर स्वपन अपनों का ,
उनके लिए कुछ कर दिखाने का ,
इस कठोर दुनिया को चुप कराने का ,
कुछ कर गुजरने के सपने से पार पाने का ,
मुश्किलों को लाँघ कर जीत जाने का |
समझ में आई यह बात की किस पथ पर जाउँ ?
दूसरी तरफ है वो इच्छा ,
जो हमेशा कहीं दिल में बसी थी ,
जो ना कभी इस समाज को जची थी .
वो इच्छा जिसमे जूनून की ना कोई कमी थी ,
पर बंदिशें हज़ार उसपे पड़ी थी |
समझ में आई यह बात की किस पथ पर जाउँ ?
निर्णय लेने के वक़्त बस यही सोच पाई ,
बहुत जीली औरों के लिए अब बात तेरी है आई ,
कब तक डरेगी दुनिया से ,
कब तक औरों की सुनेगी ,
तेरा जीवन है तेरी सोच है ,
आखीर कब तक समाज की बंदिशों में रहेगी?
भूल जा दोराहे को ,
अपने मन की सुन ,
इच्छा को अपना,
और नए आसमान के सपने बून |
वो सपने जिसपे तेरा अधिकार है ,
जिनके पूरे होने के लिए तूने किया इंतज़ार है,
अब डर किस बात का,
आगे बढ़ ,
थाम ले उस सपने को और इस उन्मुक्त गगन मे उडती चल.......