Tuesday, March 29, 2011

क्या मैं लिखना भूल गई ????

This poem came directly from my heart..and thought of posting it on blog!!

कुछ शब्द लिखते लिखते ,
मैं जाने अर्थ कैसे भूल गई ,
जीने के असली मतलब को ,
जाने कहाँ छोड गई |

जिसने बनाई थी मेरी पहचान ,
उसे राहों में तन्हा कैसे छोड गई?

क्या मैं लिखना भूल गई ????

साँझ सवेरे मेरे मन में जिसका बसेरा था ,
जिसके साथ से मैंने बचपन के हर पल को उकेरा था,
उस मेरी प्यारी सी आदत को कहाँ मैं भूल गई ,

क्या मैं लिखना भूल गई ????

मेरे मन में सदा उनका बसेरा होता था ,
कलम के तराजू पे मैंने उसको तोला था ,
कहाँ गई वो बीती आदत,
कहाँ मैं उसे छोड गई ?

क्या मैं लिखना भूल गई ????

इस कलम को आज उठाया ,
तो एक जानी पहचानी सी गूँज सुनाई दी ,
कुछ कह रहा था वो अपनेपन से ,
उस बात की गहराई दिखाई दी ,
कहाँ गई वो तेरी ताकत ,
जो तेरी परछाई थी ,
तू कैसे रूठ गई उन शब्दों से ,
जिसने तुझे ख़ुशी दिलाई थी
|


इन शब्दों ने मेरे मन में कोहराम फिर मचा दिया ,शब्दों ने मेरे मन में फिर युद्ध छिड़ा दिया ,
मैं ऐसे कैसे अपनी प्यारी सी पहचान को भूल गई,
कलम की ताकत को अनदेखा करके उससे रूठ के कैसे बैठ गई,
आखिर मैं लिखना कैसे भूल गई?

मैं लिखना कैसे भूल गई........